शोरीदगी को हैं सभी आसूदगी नसीब
वो शहर में है क्या जो बयाबान में नहीं
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सिवाए-दर-ब-दरी उस को ख़ाक मिलता है
ये कहना तुम से बिछड़ कर बिखर गया 'तिश्ना'
मिरी दस्तरस में है गर क़लम मुझे हुस्न-ए-फ़िक्र-ओ-ख़याल दे
असीर-ए-दश्त-ए-बला का न माजरा कहना
बन के ताबीर भी आया होता
हिसार-ए-मक़्तल-ए-जाँ में लहू लहू मैं था
उठते हुए तूफ़ान का मंज़र नहीं देखा
शिकस्त-ए-शीशा-ए-दिल की सदा हूँ
तमाम उम्र की दीवानगी के ब'अद खुला
ये कहना हार न मानी कभी अंधेरों से
किस किस से दोस्ती हुई ये ध्यान में नहीं
गिनती में बे-शुमार थे कम कर दिए गए