इस राह-ए-मोहब्बत में तू साथ अगर होता
हर गाम पे गुल खिलते ख़ुशबू का सफ़र होता
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दर्द की इक लहर बल खाती है यूँ दिल के क़रीब
सफ़र में राह के आशोब से न डर जाना
मैं अपनी जंग में तन-ए-तन्हा शरीक था
मिरी दस्तरस में है गर क़लम मुझे हुस्न-ए-फ़िक्र-ओ-ख़याल दे
ये कहना हार न मानी कभी अंधेरों से
हम अपने इश्क़ की अब और क्या शहादत दें
ये कहना तुम से बिछड़ कर बिखर गया 'तिश्ना'
आइना-ख़ाना भी अंदोह-ए-तमन्ना निकला
किस किस से दोस्ती हुई ये ध्यान में नहीं
अब भी ज़र्रों पे सितारों का गुमाँ है कि नहीं
असीर-ए-दश्त-ए-बला का न माजरा कहना