आलमताब तिश्ना कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का आलमताब तिश्ना
नाम | आलमताब तिश्ना |
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अंग्रेज़ी नाम | Alamtaab Tishna |
जन्म की तारीख | 1935 |
मौत की तिथि | 1991 |
जन्म स्थान | Karachi |
ये कहना तुम से बिछड़ कर बिखर गया 'तिश्ना'
ये कहना हार न मानी कभी अंधेरों से
विसाल-ए-यार की ख़्वाहिश में अक्सर
तमाम उम्र की दीवानगी के ब'अद खुला
शोरीदगी को हैं सभी आसूदगी नसीब
पहले निसाब-ए-अक़्ल हुआ हम से इंतिसाब
नफ़रत भी उसी से है परस्तिश भी उसी की
मा-सिवा-ए-कार-ए-आह-ओ-अश्क क्या है इश्क़ में
मैं जब भी घर से निकलता हूँ रात को तन्हा
इस राह-ए-मोहब्बत में तू साथ अगर होता
हम अपने इश्क़ की अब और क्या शहादत दें
हर दौर में रहा यही आईन-ए-मुंसिफ़ी
हद हो गई थी हम से मोहब्बत में कुफ़्र की
बन के ताबीर भी आया होता
वो कि हर अहद-ए-मोहब्बत से मुकरता जाए
उठते हुए तूफ़ान का मंज़र नहीं देखा
सिवाए-दर-ब-दरी उस को ख़ाक मिलता है
शिकस्त-ए-शीशा-ए-दिल की सदा हूँ
सफ़र में राह के आशोब से न डर जाना
सफ़र में राह के आशोब से न डर जाना
मिरी दस्तरस में है गर क़लम मुझे हुस्न-ए-फ़िक्र-ओ-ख़याल दे
मैं अपनी जंग में तन-ए-तन्हा शरीक था
किस किस से दोस्ती हुई ये ध्यान में नहीं
हिसार-ए-मक़्तल-ए-जाँ में लहू लहू मैं था
गिनती में बे-शुमार थे कम कर दिए गए
दर्द की इक लहर बल खाती है यूँ दिल के क़रीब
असीर-ए-दश्त-ए-बला का न माजरा कहना
अहद-ए-कम-कोशी में ये भी हौसला मैं ने किया
अब भी ज़र्रों पे सितारों का गुमाँ है कि नहीं
आइना-ख़ाना भी अंदोह-ए-तमन्ना निकला