लकीर खींच के बैठी है तिश्नगी मिरी
बस एक ज़िद है कि दरिया यहीं पे आएगा
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तमाम रंग अधूरे लगे तिरे आगे
बहुत सुकून से रहते थे हम अँधेरे में
अपनी कहानी दिल में छुपा कर रखते हैं
माँगती है अब मोहब्बत अपने होने का सुबूत
मैं जिस जगह भी रहूँगा वहीं पे आएगा
किसी के रस्ते पे कैसे नज़रें जमाए रक्खूँ
मैं जिधर जाऊँ मिरा ख़्वाब नज़र आता है
तुम जिस को ढूँडते हो ये महफ़िल नहीं है वो
क्यूँ आँखें बंद कर के रस्ते में चल रहा हूँ
मिरे हिसार से बाहर बुला रहा है मुझे
किस लम्हे हम तेरा ध्यान नहीं करते
सियाह रात के बदन पे दाग़ बन के रह गए