कुछ रस्ते मुश्किल ही अच्छे लगते हैं
कुछ रस्तों को हम आसान नहीं करते
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किसी को ढूँडते हैं हम किसी के पैकर में
मैं जिधर जाऊँ मिरा ख़्वाब नज़र आता है
तुम जिस को ढूँडते हो ये महफ़िल नहीं है वो
तिरे ख़याल को ज़ंजीर करता रहता हूँ
तहज़ीब की ज़ंजीर से उलझा रहा मैं भी
अहल-ए-हुनर की आँखों में क्यूँ चुभता रहता हूँ
हर घर में कोई तह-ख़ाना होता है
मैं ने बचपन में अधूरा ख़्वाब देखा था कोई
अब कितनी कार-आमद जंगल में लग रही है
आए हो नुमाइश में ज़रा ध्यान भी रखना
दिल रोता है चेहरा हँसता रहता है
माँगती है अब मोहब्बत अपने होने का सुबूत