कभी कभी कितना नुक़सान उठाना पड़ता है
ऐरों ग़ैरों का एहसान उठाना पड़ता है
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किस लम्हे हम तेरा ध्यान नहीं करते
लकीर खींच के बैठी है तिश्नगी मिरी
किसी को ढूँडते हैं हम किसी के पैकर में
बस एक तिरे ख़्वाब से इंकार नहीं है
थपक थपक के जिन्हें हम सुलाते रहते हैं
किसी के रस्ते पे कैसे नज़रें जमाए रक्खूँ
इस फ़ैसले से ख़ुश हैं अफ़राद घर के सारे
तह-ब-तह है राज़ कोई आब की तहवील में
रात गए अक्सर दिल के वीरानों में
इश्क़ में तहज़ीब के हैं और ही कुछ फ़लसफ़े