चारों तरफ़ हैं शोले हम-साए जल रहे हैं
मैं घर में बैठा बैठा बस हाथ मल रहा हूँ
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दिल रोता है चेहरा हँसता रहता है
हाथ पकड़ ले अब भी तेरा हो सकता हूँ मैं
आए हो नुमाइश में ज़रा ध्यान भी रखना
याद करते हो मुझे सूरज निकल जाने के बा'द
तह-ब-तह है राज़ कोई आब की तहवील में
जाना तो बहुत दूर है महताब से आगे
मैं जिधर जाऊँ मिरा ख़्वाब नज़र आता है
किसी को ढूँडते हैं हम किसी के पैकर में
बस एक तिरे ख़्वाब से इंकार नहीं है
कभी कभी कितना नुक़सान उठाना पड़ता है
किस लम्हे हम तेरा ध्यान नहीं करते
पीछे छूटे साथी मुझ को याद आ जाते हैं