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ज़रा सी धूप ज़रा सी नमी के आने से - आलम ख़ुर्शीद कविता - Darsaal

ज़रा सी धूप ज़रा सी नमी के आने से

ज़रा सी धूप ज़रा सी नमी के आने से

मैं जी उठा हूँ ज़रा ताज़गी के आने से

उदास हो गए इक पल में शादमाँ चेहरे

मिरे लबों पे ज़रा सी हँसी के आने से

दुखों के यार बिछड़ने लगे हैं अब मुझ से

ये सानेहा भी हुआ है ख़ुशी के आने से

करख़्त होने लगे हैं बुझे हुए लहजे

मिरे मिज़ाज में शाइस्तगी के आने से

बहुत सुकून से रहते थे हम अँधेरे में

फ़साद पैदा हुआ रौशनी के आने से

यक़ीन होता नहीं शहर-ए-दिल अचानक यूँ

बदल गया है किसी अजनबी के आने से

मैं रोते रोते अचानक ही हँस पड़ा 'आलम'

तमाश-बीनों में संजीदगी के आने से

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