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टूटी हुई शबीह की तस्ख़ीर क्या करें - अकरम नक़्क़ाश कविता - Darsaal

टूटी हुई शबीह की तस्ख़ीर क्या करें

टूटी हुई शबीह की तस्ख़ीर क्या करें

बुझते हुए ख़याल को ज़ंजीर क्या करें

अंधा सफ़र है ज़ीस्त किसे छोड़ दे कहाँ

उलझा हुआ सा ख़्वाब है ताबीर क्या करें

सीने में जज़्ब कितने समुंदर हुए मगर

आँखों पे इख़्तियार की तदबीर क्या करें

बस ये हुआ कि रास्ता चुप-चाप कट गया

इतनी सी वारदात की तश्हीर क्या करें

साअत कोई गुज़ार भी लें जी तो लें कभी

कुछ और अपने बाब में तहरीर क्या करें

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