गुज़रते दौड़ते लम्हे हिसाब में लिखिए
गुज़रते दौड़ते लम्हे हिसाब में लिखिए
हक़ीक़तों की तमन्ना भी ख़्वाब में लिखिए
अज़िय्यतें ही न अपनी किताब में लिखिए
सुकूँ का पल भी तो साँसों के बाब में लिखिए
हर एक हर्फ़ से जीने का फ़न नुमायाँ हो
कुछ इस तरह की इबारत निसाब में लिखिए
हर एक जुम्बिश-ए-लब और दिल की हर धड़कन
सदा यक़ीन बनी इंक़लाब में लिखिए
बसीरतों की ज़िया पर न हर्फ़ आ जाए
मैं अक़्ल-ओ-होश अभी तक हिजाब में लिखिए
सवाल बन के उभरते हैं दर्द के सूरज
सुकूँ का चाँद ही सब के जवाब में लिखिए
मिली हैं दिन की अधूरी मसाफ़तें शब को
चमकते शाम-ओ-सहर किस हिसाब में लिखिए
सुलगते जिस्म का एहसास दर्द के जुगनू
अँधेरी शब के गुज़रते हिसाब में लिखिए
(823) Peoples Rate This