दफ़अतन आँधियों ने रुख़ बदला
ना-गहाँ आरज़ू के बाग़ जले
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इरफ़ान-ओ-आगही के सज़ा-वार हम हुए
ग़म का आहंग है
वो कम-नसीब जो अहद-ए-जफ़ा में रहते हैं
आईना देखता हूँ
भुला चुके हैं ज़मीन ओ ज़माँ के सब क़िस्से
अहद-ए-वफ़ा का क़र्ज़ अदा कर दिया गया
कोई इलाज-ए-ग़म-ए-ज़िंदगी बता वाइज़
आँख दरिया जिगर लहू करना
मिला जो कोई यहाँ रम्ज़-आशना न मुझे
दिन ढला शब हुई चराग़ जले
आस डूबी तो दिल हुआ रौशन