भुला चुके हैं ज़मीन ओ ज़माँ के सब क़िस्से
सुख़न-तराज़ हैं लेकिन ख़ला में रहते हैं
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Gulzar
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Allama Iqbal
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(731) Peoples Rate This
दिन ढला शब हुई चराग़ जले
आँख दरिया जिगर लहू करना
आईना देखता हूँ
इरफ़ान-ओ-आगही के सज़ा-वार हम हुए
कोई इलाज-ए-ग़म-ए-ज़िंदगी बता वाइज़
आस डूबी तो दिल हुआ रौशन
मिला जो कोई यहाँ रम्ज़-आशना न मुझे
ग़म का आहंग है
वो कम-नसीब जो अहद-ए-जफ़ा में रहते हैं
दफ़अतन आँधियों ने रुख़ बदला
फिर वही शब के सराबों का चलन!