ये काएनात मिरे सामने है मिस्ल-ए-बिसात
कहीं जुनूँ में उलट दूँ न इस जहान को मैं
Gulzar
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Rahat Indori
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1660) Peoples Rate This
ज़र-ए-नाब
अपने पहले मकान तक हो आऊँ
वक़्त अब दस्तरस में है 'अख़्तर'
शाम
मैं अजब आदमी हूँ
शश-जिहत
गर्द-बाद
बुत-साज़
अभी तो पर भी नहीं तौलता उड़ान को मैं
शाम आए और घर के लिए दिल मचल उठे
नए सुर की तमसील