शाम आए और घर के लिए दिल मचल उठे
शाम आए और दिल के लिए कोई घर न हो
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अपने पहले मकान तक हो आऊँ
नए सुर की तमसील
गर्द-बाद
ज़र-ए-नाब
अभी तो पर भी नहीं तौलता उड़ान को मैं
मैं अजब आदमी हूँ
शाम
बुत-साज़
शश-जिहत
ये काएनात मिरे सामने है मिस्ल-ए-बिसात
वक़्त अब दस्तरस में है 'अख़्तर'