Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_1350a30b46f27749534a6e4302a5ccb7, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
बुत-साज़ - अख़्तर उस्मान कविता - Darsaal

बुत-साज़

मैं ने क्या सोच के सहरा में दुकाँ खोली है

लब-ए-लालीं के तसव्वुर में मंगाए याक़ूत

नज्म लाया हूँ कि तरतीब हो सिल्क-ए-दंदाँ

मह-ए-यक-रू भी तो दरकार है अबरू के लिए

दूर उफ़ुक़ पार से थोड़ी सी शफ़क़ लाया हूँ

ख़ून में गूँध के भट्टी में तपाऊँगा उसे

तब कहीं सुर्ख़ी-ए-रुख़्सार हुवैदा होगी

मैं ने तय्यार किया ख़ाक-ए-कवाकिब से ख़मीर

कुछ नहीं कुछ भी नहीं आज अज़ा-ख़ाने में

आज ख़स-ख़ाना-ए-ख़्वाहिश में फ़क़त राख है राख

वो किसी दस्त-ए-हुनर-वर का तराशा हुआ तिल

कफ़-ए-ज़ौ-रेज़ को शरमाता था माह-ए-कामिल

वो तिरी साअद-ए-सीमीं का ज़मुर्रद भी ख़जिल

कुछ नहीं कुछ भी नहीं आज अज़ा-ख़ाने में

आज भी सोचता हूँ अपने जुनूँ में आ कर

मैं ने क्या सोच के सहरा में दुकाँ खोली थी

(1677) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

But-saz In Hindi By Famous Poet Akhtar Usman. But-saz is written by Akhtar Usman. Complete Poem But-saz in Hindi by Akhtar Usman. Download free But-saz Poem for Youth in PDF. But-saz is a Poem on Inspiration for young students. Share But-saz with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.