इक मुहक़क़िक़ ने इंसान को बुज़ना जब कहा
मैं वहीं सज्दा-ए-शुक्र में गिर गया
अपनी कोताहियों, ख़ामियों के लिए
आफ़रीनश से अब तक जो शर्मिंदा था
आज वो बोझ, बारे ज़रा कम हुआ
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