तब्दीली

इस भरे शहर में कोई ऐसा नहीं

जो मुझे राह चलते को पहचान ले

और आवाज़ दे ओ बे ओ सर-फिरे

दोनों इक दूसरे से लिपट कर वहीं

गिर्द-ओ-पेश और माहौल को भूल कर

गालियाँ दें हँसें हाथा-पाई करें

पास के पेड़ की छाँव में बैठ कर

घंटों इक दूसरे की सुनें और कहें

और इस नेक रूहों के बाज़ार में

मेरी ये क़ीमती बे-बहा ज़िंदगी

एक दिन के लिए अपना रुख़ मोड़ ले

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Tabdili In Hindi By Famous Poet Akhtar-ul-Iman. Tabdili is written by Akhtar-ul-Iman. Complete Poem Tabdili in Hindi by Akhtar-ul-Iman. Download free Tabdili Poem for Youth in PDF. Tabdili is a Poem on Inspiration for young students. Share Tabdili with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.