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काविश - अख़्तर-उल-ईमान कविता - Darsaal

काविश

नया दिन रोज़ मुझ को कितना पीछे फेंक देता है

ये आज अंदाज़ा होता है कि मैं आहिस्ता आहिस्ता

हज़ारों मील की दूरी पे तुम से आ गया और अब

दिनों सालों महीनों को इकट्ठा कर के गुम-गश्ता

दयार-ए-हू में बैठा हूँ न कुछ आगे न कुछ पीछे

सिवा कुछ वसवसों के कुछ ख़सारों के कमर-बस्ता

कहीं चलने को आगे जिस का वाज़ेह कुछ तसव्वुर ही नहीं कोई

हमारे सब मसाइल जिन का हम पर बोझ है इतना

हमारी किश्त-ए-बे-माया हैं इस सहरा में क्या बोया

बगूलों के सिवा कुछ गर्म झोंकों के सिवा हम ने

चलो इक तेज़ धारे में कहीं पर डाल दें कश्ती

लताफ़त ठंडे पानी की करें महसूस कुछ थोड़ा बिखर जाएँ

हँसें बे-वजह यूँही ग़ुल मचाएँ बे-सबब दौड़ें

उड़ें उन बादलों के पीछे और मीलों निकल जाएँ

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Kawish In Hindi By Famous Poet Akhtar-ul-Iman. Kawish is written by Akhtar-ul-Iman. Complete Poem Kawish in Hindi by Akhtar-ul-Iman. Download free Kawish Poem for Youth in PDF. Kawish is a Poem on Inspiration for young students. Share Kawish with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.