बे-चारगी

हज़ार बार हुआ यूँ कि जब उमीद गई

गुलों से राब्ता टूटा न ख़ार अपने रहे

गुमाँ गुज़रने लगा हम खड़े हैं सहरा में

फ़रेब खाने की जा रह गई, न सपने रहे

नज़र उठा के कभी देख लेते थे ऊपर

न जाने कौन से आमाल की सज़ा है कि आज

ये वाहिमा भी गया सर पे आसमाँ है कोई

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Be-chaargi In Hindi By Famous Poet Akhtar-ul-Iman. Be-chaargi is written by Akhtar-ul-Iman. Complete Poem Be-chaargi in Hindi by Akhtar-ul-Iman. Download free Be-chaargi Poem for Youth in PDF. Be-chaargi is a Poem on Inspiration for young students. Share Be-chaargi with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.