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उस की चाह में नाम नहीं आने वाला - अख्तर शुमार कविता - Darsaal

उस की चाह में नाम नहीं आने वाला

उस की चाह में नाम नहीं आने वाला

अब मेरा अंजाम नहीं आने वाला

हुस्न से काम पड़ा है आख़िरी साँसों में

और वो किसी के काम नहीं आने वाला

मेरी सदा पर वो नज़दीक तो आएगा

लेकिन ज़ेर-ए-दाम नहीं आने वाला

एक झलक से प्यास का रोग बढ़ेगा और

इस से मुझे आराम नहीं आने वाला

इश्क़ के नाम पे तेरा रंग न बदले यार

तुझ पर कुछ इल्ज़ाम नहीं आने वाला

काम को बैठे हैं और सर पर आई शाम

लगता है अब काम नहीं आने वाला

क्यूँ बे-कार उस शख़्स का रस्ता देखते हो

वो तो 'शुमार' इस शाम नहीं आने वाला

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