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ऐ दुनिया तेरे रस्ते से हट जाएँगे - अख्तर शुमार कविता - Darsaal

ऐ दुनिया तेरे रस्ते से हट जाएँगे

ऐ दुनिया तेरे रस्ते से हट जाएँगे

आख़िर हम भी अपने सामने डट जाएँगे

हम ख़ुद को आबाद करेंगे अपने दिल में

तेरे आँख-जज़ीरे से अब कट जाएँगे

धुँध से पार भी काम करेंगी अपनी नज़रें

आँख के सामने से ये बादल छट जाएँगे

आख़िर ढल जाएगा ''जीवन-रोग'' का सूरज

हम भी ''ओखे-दिन'' हैं लेकिन कट जाएँगे

लोग हमें महसूस करेंगे फूल और तारे

और हम सोचती ''दिल-आँखों'' में बट जाएँगे

देखना ऐसी रात भी आएगी जब 'अख़्तर'

धीरे धीरे हम तारों से अट जाएँगे

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