Islamic Poetry of Akhtar Shirani
नाम | अख़्तर शीरानी |
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अंग्रेज़ी नाम | Akhtar Shirani |
जन्म की तारीख | 1905 |
मौत की तिथि | 1948 |
जन्म स्थान | Lahore |
उठते नहीं हैं अब तो दुआ के लिए भी हाथ
किया है आने का वादा तो उस ने
वक़्त की क़द्र
ओ देस से आने वाले बता
जहाँ 'रेहाना' रहती थी
दिल-ओ-दिमाग़ को रो लूँगा आह कर लूँगा
दावत
बस्ती की लड़कियों के नाम
बदनाम हो रहा हूँ
ज़मान-ए-हिज्र मिटे दौर-ए-वस्ल-ए-यार आए
यक़ीन-ए-वादा नहीं ताब-ए-इंतिज़ार नहीं
वो कहते हैं रंजिश की बातें भुला दें
उन को बुलाएँ और वो न आएँ तो क्या करें
मोहब्बत की दुनिया में मशहूर कर दूँ
हर एक जल्वा-ए-रंगीं मिरी निगाह में है
अगर वो अपने हसीन चेहरे को भूल कर बे-नक़ाब कर दे