उस के अहद-ए-शबाब में जीना
जीने वालो तुम्हें हुआ क्या है
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इन वफ़ादारी के वादों को इलाही क्या हुआ
मुबारक मुबारक नया साल आया
ऐ दिल वो आशिक़ी के फ़साने किधर गए
काम आ सकीं न अपनी वफ़ाएँ तो क्या करें
कूचा-ए-हुस्न छुटा तो हुए रुस्वा-ए-शराब
ला पिला साक़ी शराब-ए-अर्ग़वानी फिर कहाँ
मोहब्बत के इक़रार से शर्म कब तक
थक गए हम करते करते इंतिज़ार
कुछ इस तरह से याद आते रहे हो
मय-ख़ाना-ब-दोश हैं घटाएँ साक़ी
यक़ीन-ए-वादा नहीं ताब-ए-इंतिज़ार नहीं
सू-ए-कलकत्ता जो हम ब-दिल-ए-दीवाना चले