उन रस भरी आँखों में हया खेल रही है
दो ज़हर के प्यालों में क़ज़ा खेल रही है
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अब वो बातें न वो रातें न मुलाक़ातें हैं
वो कभी मिल जाएँ तो क्या कीजिए
जन्नत का समाँ दिखा दिया है मुझ को
मय-ख़ाना-ब-दोश हैं घटाएँ साक़ी
कुछ तो तन्हाई की रातों में सहारा होता
दिल-ए-दीवाना ओ अंदाज़-ए-बेबाकाना रखते हैं
झूम कर बदली उठी और छा गई
ज़मान-ए-हिज्र मिटे दौर-ए-वस्ल-ए-यार आए
ओ देस से आने वाले बता
मुबारक मुबारक नया साल आया
सू-ए-कलकत्ता जो हम ब-दिल-ए-दीवाना चले