किया है आने का वादा तो उस ने
मेरे परवरदिगार आए न आए
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है क़यामत तिरे शबाब का रंग
पलट सी गई है ज़माने की काया
अँगूठी
उठते नहीं हैं अब तो दुआ के लिए भी हाथ
उम्र भर की तल्ख़ बेदारी का सामाँ हो गईं
इक वो कि आरज़ुओं पे जीते हैं उम्र भर
हर एक जल्वा-ए-रंगीं मिरी निगाह में है
कुछ इस तरह से याद आते रहे हो
कूचा-ए-हुस्न छुटा तो हुए रुस्वा-ए-शराब
भुला बैठे हो हम को आज लेकिन ये समझ लेना
न भूल कर भी तमन्ना-ए-रंग-ओ-बू करते
मुद्दतें हो गईं बिछड़े हुए तुम से लेकिन