काँटों से दिल लगाओ जो ता-उम्र साथ दें
फूलों का क्या जो साँस की गर्मी न सह सकें
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
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Wasi Shah
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Habib Jalib
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Anwar Masood
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कुछ इस तरह से याद आते रहे हो
झूम कर बदली उठी और छा गई
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर
हर एक जल्वा-ए-रंगीं मिरी निगाह में है
अब वो बातें न वो रातें न मुलाक़ातें हैं
एक शाएरा की शादी पर
नज़्र-ए-वतन
जहाँ 'रेहाना' रहती थी
बजा कि है पास-ए-हश्र हम को करेंगे पास-ए-शबाब पहले
बरखा-रुत
कुछ तो तन्हाई की रातों में सहारा होता
ला पिला साक़ी शराब-ए-अर्ग़वानी फिर कहाँ