काम आ सकीं न अपनी वफ़ाएँ तो क्या करें
उस बेवफ़ा को भूल न जाएँ तो क्या करें
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Jaun Eliya
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Parveen Shakir
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वादा उस माह-रू के आने का
दिन रात मय-कदे में गुज़रती थी ज़िंदगी
तमन्नाओं को ज़िंदा आरज़ूओं को जवाँ कर लूँ
लॉन्ड्री खोली थी उस के इश्क़ में
किस की आँखों का लिए दिल पे असर जाते हैं
है क़यामत तिरे शबाब का रंग
नन्हा क़ासिद
उन रस भरी आँखों में हया खेल रही है
दिल-ओ-दिमाग़ को रो लूँगा आह कर लूँगा
इक वो कि आरज़ुओं पे जीते हैं उम्र भर
चमन में रहने वालों से तो हम सहरा-नशीं अच्छे