इश्क़ को नग़्मा-ए-उम्मीद सुना दे आ कर
दिल की सोई हुई क़िस्मत को जगा दे आ कर
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कुछ तो तन्हाई की रातों में सहारा होता
जन्नत का समाँ दिखा दिया है मुझ को
मुबारक मुबारक नया साल आया
बजा कि है पास-ए-हश्र हम को करेंगे पास-ए-शबाब पहले
जहाँ 'रेहाना' रहती थी
चमन में रहने वालों से तो हम सहरा-नशीं अच्छे
इक वो कि आरज़ुओं पे जीते हैं उम्र भर
ला पिला साक़ी शराब-ए-अर्ग़वानी फिर कहाँ
ग़म अज़ीज़ों का हसीनों की जुदाई देखी
इन्ही ग़म की घटाओं से ख़ुशी का चाँद निकलेगा
काँटों से दिल लगाओ जो ता-उम्र साथ दें
पलट सी गई है ज़माने की काया