ऐ दिल वो आशिक़ी के फ़साने किधर गए
वो उम्र क्या हुई वो ज़माने किधर गए
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मय-ख़ाना-ब-दोश हैं घटाएँ साक़ी
ईद आई है ऐश-ओ-नोश का सामाँ कर
आँसू
ग़म अज़ीज़ों का हसीनों की जुदाई देखी
ग़म-ए-आक़िबत है न फ़िक्र-ए-ज़माना
कूचा-ए-हुस्न छुटा तो हुए रुस्वा-ए-शराब
मिरी आँखों से ज़ाहिर ख़ूँ-फ़िशानी अब भी होती है
रिंदों को बहिश्त की ख़बर दे साक़ी
मोहब्बत के इक़रार से शर्म कब तक
किस को देखा है ये हुआ क्या है
मुझे दोनों जहाँ में एक वो मिल जाएँ गर 'अख़्तर'