ला पिला साक़ी शराब-ए-अर्ग़वानी फिर कहाँ
ला पिला साक़ी शराब-ए-अर्ग़वानी फिर कहाँ
ज़िंदगानी फिर कहाँ नादाँ जवानी फिर कहाँ
दो घड़ी मिल बैठने को भी ग़नीमत जानिए
उम्र फ़ानी ही सही ये उम्र-ए-फ़ानी फिर कहाँ
आ कि हम भी इक तराना झूम कर गाते चलें
इस चमन के ताएरों की हम-ज़बानी फिर कहाँ
है ज़माना इश्क़-ए-सलमा में गँवा दे ज़िंदगी
ये ज़माना फिर कहाँ ये ज़िंदगानी फिर कहाँ
एक ही बस्ती में हैं आसाँ है मिलना आ मिलो
क्या ख़बर ले जाए दौर-ए-आसमानी फिर कहाँ
फ़स्ल-ए-गुल जाने को है दौर-ए-ख़िज़ाँ आने को है
ये चमन ये बुलबुलें ये नग़्मा-ख़्वानी फिर कहाँ
फूल चुन जी खोल कर ऐश-ओ-तरब के फूल चुन
मौसम-ए-गुल फिर कहाँ फस्ल-ए-जवानी फिर कहाँ
आख़िरी रात आ गई जी भर के मिल लें आज तो
तुम से मिलने देगा दौर-ए-आसमानी फिर कहाँ
आज आए हो तो सुनते जाओ ये ताज़ा ग़ज़ल
वर्ना 'अख़्तर' फिर कहाँ ये शेर-ख़्वानी फिर कहाँ
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