काम आ सकीं न अपनी वफ़ाएँ तो क्या करें

काम आ सकीं न अपनी वफ़ाएँ तो क्या करें

उस बेवफ़ा को भूल न जाएँ तो क्या करें

मुझ को ये ए'तिराफ़ दुआओं में है असर

जाएँ न अर्श पर जो दुआएँ तो क्या करें

इक दिन की बात हो तो उसे भूल जाएँ हम

नाज़िल हों दिल पे रोज़ बलाएँ तो क्या करें

ज़ुल्मत-ब-दोश है मिरी दुनिया-ए-आशिक़ी

तारों की मिशअले न चुराएँ तो क्या करें

शब भर तो उन की याद में तारे गिना किए

तारे से दिन को भी नज़र आएँ तो क्या करें

अहद-ए-तरब की याद में रोया किए बहुत

अब मुस्कुरा के भूल न जाएँ तो क्या करें

अब जी में है कि उन को भुला कर ही देख लें

वो बार बार याद जो आएँ तो क्या करें

वअ'दे के ए'तिबार में तस्कीन-ए-दिल तो है

अब फिर वही फ़रेब न खाएँ तो क्या करें

तर्क-ए-वफ़ा भी जुर्म-ए-मोहब्बत सही मगर

मिलने लगें वफ़ा की सज़ाएँ तो क्या करें

(937) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Kaam Aa Sakin Na Apni Wafaen To Kya Karen In Hindi By Famous Poet Akhtar Shirani. Kaam Aa Sakin Na Apni Wafaen To Kya Karen is written by Akhtar Shirani. Complete Poem Kaam Aa Sakin Na Apni Wafaen To Kya Karen in Hindi by Akhtar Shirani. Download free Kaam Aa Sakin Na Apni Wafaen To Kya Karen Poem for Youth in PDF. Kaam Aa Sakin Na Apni Wafaen To Kya Karen is a Poem on Inspiration for young students. Share Kaam Aa Sakin Na Apni Wafaen To Kya Karen with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.