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आओ बे-पर्दा तुम्हें जल्वा-ए-पिन्हाँ की क़सम - अख़्तर शीरानी कविता - Darsaal

आओ बे-पर्दा तुम्हें जल्वा-ए-पिन्हाँ की क़सम

आओ बे-पर्दा तुम्हें जल्वा-ए-पिन्हाँ की क़सम

हम न छेड़ेंगे हमें ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ की क़सम

चाक-ए-दामाँ की क़सम चाक-ए-गरेबाँ की क़सम

हँसने वाले तुझे इस हाल-ए-परेशाँ की क़सम

मेरे अरमान से वाक़िफ़ नहीं शरमाएँगे आप

आप क्यूँ खाते हैं नाहक़ मिरे अरमाँ की क़सम

नींद आए न कभी तुझ से बिछड़ कर ज़ालिम

अपनी आँखों की क़सम तेरे शबिस्ताँ की क़सम

लब-ए-जानाँ पे फ़िदा आरिज़-ए-जानाँ के निसार

शाम-ए-रंगीं की क़सम सुब्ह-ए-दरख़्शाँ की क़सम

आज तक सुब्ह-ए-वतन याद है हम को 'अख़्तर'

दर्द-ए-हिज्राँ की क़सम शाम-ए-ग़रीबाँ की क़सम

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