Khawab Poetry of Akhtar Shirani
नाम | अख़्तर शीरानी |
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अंग्रेज़ी नाम | Akhtar Shirani |
जन्म की तारीख | 1905 |
मौत की तिथि | 1948 |
जन्म स्थान | Lahore |
उम्र भर की तल्ख़ बेदारी का सामाँ हो गईं
रात भर उन का तसव्वुर दिल को तड़पाता रहा
माना कि सब के सामने मिलने से है हिजाब
ख़फ़ा हैं फिर भी आ कर छेड़ जाते हैं तसव्वुर में
अब वो बातें न वो रातें न मुलाक़ातें हैं
वक़्त की क़द्र
ओ देस से आने वाले बता
नन्हा क़ासिद
मुझे ले चल
जहाँ 'रेहाना' रहती थी
एक शाएरा की शादी पर
एक हुस्न-फ़रोश से
दिल-ओ-दिमाग़ को रो लूँगा आह कर लूँगा
दावत
बस्ती की लड़कियों के नाम
बरखा-रुत
बदनाम हो रहा हूँ
अँगूठी
ऐ इश्क़ कहीं ले चल
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर
ज़मान-ए-हिज्र मिटे दौर-ए-वस्ल-ए-यार आए
यक़ीन-ए-वादा नहीं ताब-ए-इंतिज़ार नहीं
वो कहते हैं रंजिश की बातें भुला दें
उन को बुलाएँ और वो न आएँ तो क्या करें
उम्र भर की तल्ख़ बेदारी का सामाँ हो गईं
सू-ए-कलकत्ता जो हम ब-दिल-ए-दीवाना चले
निकहत-ए-ज़ुल्फ़ से नींदों को बसा दे आ कर
मिरी शाम-ए-ग़म को वो बहला रहे हैं
मिरी आँखों से ज़ाहिर ख़ूँ-फ़िशानी अब भी होती है
मैं आरज़ू-ए-जाँ लिखूँ या जान-ए-आरज़ू!