ये मुंसिफ़ान-ए-शहर हैं ये पासबान-ए-शहर
इन को बताओ नाम जो बलवाइयों के हैं
Ahmad Faraz
Gulzar
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Rahat Indori
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यारान-ए-तेज़-गाम से रंजिश कहाँ है अब
अगर बुलंदी का मेरी वो ए'तिराफ़ करे
लम्हा लम्हा यही सोचूँ यही देखा चाहूँ
जो फ़क़त शोख़ी-ए-तहरीर भी हो सकती है
क़िस्मत में दर्द है तो दवा ही न लाऊँगा
कहाँ से लाएँगे आँसू अज़ा-दारी के मौसम में
वक़्त बे-रहम है मक़्तल की ज़मीनों जैसा
दिल बहलने के वसीले दे गया वो
जब मुख़ालिफ़ मिरा राज़-दाँ हो गया
राह-ए-वफ़ा में कोई हमें जानता न था
जो पलकों पर मिरी ठहरा हुआ है