इक अजब आलम है दिल का ज़िंदगी की राह में

इक अजब आलम है दिल का ज़िंदगी की राह में

देखता हूँ कुछ कमी सी हुस्न-ए-महर-ओ-माह में

उस के होते भी मैं इक एहसास-ए-तन्हाई में हूँ

जल्वा-गर है वो जो मुद्दत से दिल-ए-आगाह में

दूर हो कर मुझ से चलती है हवा-ए-जाँ-फ़ज़ा

जी रहा हूँ फिर भी ऐसे मौसम-ए-जाँकाह में

हर क़दम पर क्यूँ डराती है मुझे ये ज़िंदगी

ये जो मेरी रौशनी थी ज़ुल्मतों की राह में

कैसे उठ्ठूँ तेरे दर से ऐ जहान-ए-आरज़ू

एक आलम को समेटे दामन-ए-कोताह में

ऐ परस्तारान-ए-दुनिया दिल की दुनिया है कुछ और

कौन ठोकर खाए बिन रहता है उस की राह में

अब न पहचाने कोई 'अख़्तर' तो इस का क्या इलाज

उम्र सारी काट दी है तू ने रस्म-ओ-राह में

(776) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Ek Ajab Aalam Hai Dil Ka Zindagi Ki Rah Mein In Hindi By Famous Poet Akhtar Saeedi. Ek Ajab Aalam Hai Dil Ka Zindagi Ki Rah Mein is written by Akhtar Saeedi. Complete Poem Ek Ajab Aalam Hai Dil Ka Zindagi Ki Rah Mein in Hindi by Akhtar Saeedi. Download free Ek Ajab Aalam Hai Dil Ka Zindagi Ki Rah Mein Poem for Youth in PDF. Ek Ajab Aalam Hai Dil Ka Zindagi Ki Rah Mein is a Poem on Inspiration for young students. Share Ek Ajab Aalam Hai Dil Ka Zindagi Ki Rah Mein with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.