ये बे-सबब नहीं आए हैं आँख में आँसू
ख़ुशी का लम्हा कोई याद आ गया होगा
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किस को फ़ुर्सत थी कि 'अख़्तर' देखता मेरी तरफ़
बहुत क़रीब रही है ये ज़िंदगी हम से
तुम हो या छेड़ती है याद-ए-सहर कोई तो है
मुद्दत से लापता है ख़ुदा जाने क्या हुआ
ज़िंदगी छीन ले बख़्शी हुई दौलत अपनी
सैर-गाह-ए-दुनिया का हासिल-ए-तमाशा क्या
चराग़ ले के उसे ढूँडने चला हूँ मैं
निगाहें मुंतज़िर हैं किस की दिल को जुस्तुजू क्या है
किस जुर्म-ए-आरज़ू की सज़ा है ये ज़िंदगी
सफ़र ही शर्त-ए-सफ़र है तो ख़त्म क्या होगा
कैसे समझाऊँ नसीम-ए-सुब्ह तुझ को क्या हूँ मैं
दीदनी है ज़ख़्म-ए-दिल और आप से पर्दा भी क्या