तू कहानी ही के पर्दे में भली लगती है
ज़िंदगी तेरी हक़ीक़त नहीं देखी जाती
Wasi Shah
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1488) Peoples Rate This
मुद्दत से लापता है ख़ुदा जाने क्या हुआ
मिरा फ़साना हर इक दिल का माजरा तो न था
किस को फ़ुर्सत थी कि 'अख़्तर' देखता मेरी तरफ़
तुम से छुट कर ज़िंदगी का नक़्श-ए-पा मिलता नहीं
खुली आँखों नज़र आता नहीं कुछ
सैर-गाह-ए-दुनिया का हासिल-ए-तमाशा क्या
सुन रहा हूँ बे-सदा नग़्मा जो मैं बा-चश्म-ए-तर
ये दश्त वो है जहाँ रास्ता नहीं मिलता
ज़िंदगी क्या हुए वो अपने ज़माने वाले
चंद उलझी हुई साँसों की अता हूँ क्या हूँ
याद आएँ जो अय्याम-ए-बहाराँ तो किधर जाएँ