मिरा फ़साना हर इक दिल का माजरा तो न था
सुना भी होगा किसी ने तो क्या सुना होगा
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बहुत क़रीब रही है ये ज़िंदगी हम से
आ कि मैं देख लूँ खोया हुआ चेहरा अपना
किस जुर्म-ए-आरज़ू की सज़ा है ये ज़िंदगी
कहें किस से हमारा खो गया क्या
दिल-ए-शोरीदा की वहशत नहीं देखी जाती
बंद रक्खोगे दरीचे दिल के यारो कब तलक
हर मौज गले लग के ये कहती है ठहर जाओ
तिरी जबीं पे मिरी सुब्ह का सितारा है
गुज़रना है जी से गुज़र जाइए
दुश्मन-ए-जाँ ही सही साथ तो इक उम्र का है
किसी के तुम हो किसी का ख़ुदा है दुनिया में