खुली आँखों नज़र आता नहीं कुछ
हर इक से पूछता हूँ वो गया क्या
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नैरंगी-ए-नशात-ए-तमन्ना अजीब है
ज़िंदगी क्या हुए वो अपने ज़माने वाले
मुझे अब देखती है ज़िंदगी यूँ बे-नियाज़ाना
आज भी दश्त-ए-बला में नहर पर पहरा रहा
ना-उमीदी हर्फ़-ए-तोहमत ही सही क्या कीजिए
लब-ए-सुकूत पे इक हर्फ़-ए-बे-नवा भी नहीं
सुन रहा हूँ बे-सदा नग़्मा जो मैं बा-चश्म-ए-तर
ये बे-सबब नहीं आए हैं आँख में आँसू
दीदनी है ज़ख़्म-ए-दिल और आप से पर्दा भी क्या
दिल-ए-शोरीदा की वहशत नहीं देखी जाती
इसी मोड़ पर हम हुए थे जुदा
दिल की राहें ढूँडने जब हम चले