कौन जीने के लिए मरता रहे
लो सँभालो अपनी दुनिया हम चले
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याद आएँ जो अय्याम-ए-बहाराँ तो किधर जाएँ
किस को फ़ुर्सत थी कि 'अख़्तर' देखता मेरी तरफ़
लब-ए-सुकूत पे इक हर्फ़-ए-बे-नवा भी नहीं
ज़िंदगी क्या हुए वो अपने ज़माने वाले
निगाहें मुंतज़िर हैं किस की दिल को जुस्तुजू क्या है
किस जुर्म-ए-आरज़ू की सज़ा है ये ज़िंदगी
बला-ए-तीरा-शबी का जवाब ले आए
दुश्मन-ए-जाँ ही सही साथ तो इक उम्र का है
कैसे समझाऊँ नसीम-ए-सुब्ह तुझ को क्या हूँ मैं
तिरी जबीं पे मिरी सुब्ह का सितारा है