इसी मोड़ पर हम हुए थे जुदा
मिले हैं तो दम भर ठहर जाइए
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ज़िंदगी क्या हुए वो अपने ज़माने वाले
याद आएँ जो अय्याम-ए-बहाराँ तो किधर जाएँ
लब-ए-सुकूत पे इक हर्फ़-ए-बे-नवा भी नहीं
कहें किस से हमारा खो गया क्या
गुज़रना है जी से गुज़र जाइए
हर मौज गले लग के ये कहती है ठहर जाओ
किसी के तुम हो किसी का ख़ुदा है दुनिया में
तुम से छुट कर ज़िंदगी का नक़्श-ए-पा मिलता नहीं
आ कि मैं देख लूँ खोया हुआ चेहरा अपना
ना-उमीदी हर्फ़-ए-तोहमत ही सही क्या कीजिए
बला-ए-तीरा-शबी का जवाब ले आए
बंद कर दे कोई माज़ी का दरीचा मुझ पर