हम ने माना इक न इक दिन लौट के तू आ जाएगा
लेकिन तुझ बिन उम्र जो गुज़री कौन उसे लौटाएगा
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आज भी दश्त-ए-बला में नहर पर पहरा रहा
नैरंगी-ए-नशात-ए-तमन्ना अजीब है
मुद्दत से लापता है ख़ुदा जाने क्या हुआ
बंद रक्खोगे दरीचे दिल के यारो कब तलक
कैसे समझाऊँ नसीम-ए-सुब्ह तुझ को क्या हूँ मैं
ज़िंदगी क्या हुए वो अपने ज़माने वाले
कहें किस से हमारा खो गया क्या
ये बे-सबब नहीं आए हैं आँख में आँसू
किस जुर्म-ए-आरज़ू की सज़ा है ये ज़िंदगी
ये दश्त वो है जहाँ रास्ता नहीं मिलता
कभी ज़बाँ पे न आया कि आरज़ू क्या है
ज़िंदगी छीन ले बख़्शी हुई दौलत अपनी