बंद कर दे कोई माज़ी का दरीचा मुझ पर
अब इस आईने में सूरत नहीं देखी जाती
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गुज़रना है जी से गुज़र जाइए
ज़िंदगी छीन ले बख़्शी हुई दौलत अपनी
चराग़ ले के उसे ढूँडने चला हूँ मैं
निगाहें मुंतज़िर हैं किस की दिल को जुस्तुजू क्या है
ज़माना इश्क़ के मारों को मात क्या देगा
तिरी जबीं पे मिरी सुब्ह का सितारा है
तुम से छुट कर ज़िंदगी का नक़्श-ए-पा मिलता नहीं
चंद उलझी हुई साँसों की अता हूँ क्या हूँ
दिल-ए-शोरीदा की वहशत नहीं देखी जाती
बंद रक्खोगे दरीचे दिल के यारो कब तलक
ना-उमीदी हर्फ़-ए-तोहमत ही सही क्या कीजिए
मआल-ए-गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार कुछ भी नहीं