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कहें किस से हमारा खो गया क्या - अख़्तर सईद ख़ान कविता - Darsaal

कहें किस से हमारा खो गया क्या

कहें किस से हमारा खो गया क्या

किसी को क्या कि हम को हो गया क्या

खुली आँखों नज़र आता नहीं कुछ

हर इक से पूछता हूँ वो गया क्या

मुझे हर बात पर झुटला रही है

ये तुझ बिन ज़िंदगी को हो गया क्या

उदासी राह की कुछ कह रही है

मुसाफ़िर रास्ते में खो गया क्या

ये बस्ती इस क़दर सुनसान कब थी

दिल-ए-शोरीदा थक कर सो गया क्या

चमन-आराई थी जिस गुल का शेवा

मिरी राहों में काँटे बो गया क्या

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