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बताएँ क्या कि कहाँ पर मकान होते थे - अख़्तर रज़ा सलीमी कविता - Darsaal

बताएँ क्या कि कहाँ पर मकान होते थे

बताएँ क्या कि कहाँ पर मकान होते थे

वहाँ नहीं हैं जहाँ पर मकान होते थे

सुना गया है यहाँ शहर बस रहा था कोई

कहा गया है यहाँ पर मकान होते थे

वो जिस जगह से अभी उठ रहा है गर्द-ओ-ग़ुबार

कभी हमारे वहाँ पर मकान होते थे

हर एक सम्त नज़र आ रहे हैं ढेर पे ढेर

हर एक सम्त मकाँ पर मकान होते थे

ठहर सके न 'रज़ा' मौज-ए-तुंद के आगे

वो जिन के आब-ए-रवाँ पर मकान होते थे

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