अख़्तर रज़ा सलीमी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का अख़्तर रज़ा सलीमी
नाम | अख़्तर रज़ा सलीमी |
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अंग्रेज़ी नाम | Akhtar Raza Saleemi |
जन्म की तारीख | 1974 |
जन्म स्थान | Islamabad |
यहीं कहीं पे कोई शहर बस रहा था अभी
तुम्हारे होने का शायद सुराग़ पाने लगे
तुझे ख़बर नहीं इस बात की अभी शायद
सुना गया है यहाँ शहर बस रहा था कोई
पहले तराशा काँच से उस ने मिरा वजूद
ख़्वाब गलियों में फिर रहे थे और
जिस्मों से निकल रहे हैं साए
हम आए रोज़ नया ख़्वाब देखते हैं मगर
गुज़र रहा हूँ किसी जन्नत-ए-जमाल से मैं
इक आग हमारी मुंतज़िर है
दिल-ओ-निगाह पे तारी रहे फ़ुसूँ उस का
दिल ओ निगाह पे तारी रहे फ़ुसूँ उस का
अब ज़मीं भी जगह नहीं देती
आए अदम से एक झलक देखने तिरी
एक कहानी
वो हुस्न-ए-सब्ज़ जो उतरा नहीं है डाली पर
वो भी क्या दिन थे क्या ज़माने थे
तुम्हारे होने का शायद सुराग़ पाने लगे
ख़बर नहीं थी किसी को कहाँ कहाँ कोई है
हमारे जिस्म अगर रौशनी में ढल जाएँ
फ़ुरात-ए-चश्म में इक आग सी लगाता हुआ
दिल ओ निगाह पे तारी रहे फ़ुसूँ उस का
बताएँ क्या कि कहाँ पर मकान होते थे
अंदेशे मुझे निगल रहे हैं