तीसरी पाली

वो भी इक अच्छा मुसव्विर था

पिछले बल्वे में ही उस के

दोनों बाज़ू कट गए

और उस बल्वे में उस की

दोनों आँखें बुझ गईं

नूर-ए-फ़ितरत की सभी शक्लें मिटीं

बड़ी मुश्किल से उस अंधे मुसव्विर को

एक कमरा चाल में ही मिल गया

और पड़ोसन के वसीले से जवाँ बेटी को भी

कार-ख़ाने में सदा की तीसरी पाली मिली

अब वो माँ की गोद में रातों को सोती भी नहीं

माँग अफ़्शाँ चूड़ियों की ज़िद में रोती भी नहीं

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