शनासाई

रात के हाथ पे जलती हुई इक शम-ए-वफ़ा

अपना हक़ माँगती है

दूर ख़्वाबों के जज़ीरे में

किसी रौज़न से

सुब्ह की एक किरन झाँकती है

वो किरन दरपा-ए-आज़ार हुई जाती है

मेरी ग़म-ख़्वार हुई जाती है

आओ किरनों को अंधेरों का कफ़न पहनाएँ

इक चमकता हुआ सूरज सर-ए-मक़्तल लाएँ

तुम मिरे पास रहो

और यही बात कहो

आज भी हर्फ़-ए-वफ़ा बाइस-ए-रुस्वाई है

अपने क़ातिल से मिरी ख़ूब शनासाई है

(781) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Shanasai In Hindi By Famous Poet Akhtar Payami. Shanasai is written by Akhtar Payami. Complete Poem Shanasai in Hindi by Akhtar Payami. Download free Shanasai Poem for Youth in PDF. Shanasai is a Poem on Inspiration for young students. Share Shanasai with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.