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ये आने वाला ज़माना हमें बताएगा - अख़्तर नज़्मी कविता - Darsaal

ये आने वाला ज़माना हमें बताएगा

ये आने वाला ज़माना हमें बताएगा

वो घर बनाएगा अपना कि घर बसाएगा

मैं सारे शहर में बदनाम हूँ ख़बर है मुझे

वो मेरे नाम से क्या फ़ाएदा उठाएगा

फिर उस के बा'द उजाले ख़रीदने होंगे

ज़रा सी देर में सूरज तो डूब जाएगा

है सैर-गाह ये कच्ची मुंडेर साँपों की

यहाँ से कैसे कोई रास्ता बनाएगा

सुनाई देती नहीं घर के शोर में दस्तक

मैं जानता हूँ जो आएगा लौट जाएगा

मैं सोच भी नहीं सकता था उन उड़ानों में

वो अपने गाँव की मिट्टी को भूल जाएगा

हज़ारों रोग तो पाले हुए हो तुम 'नज़मी'

बचाने वाला कहाँ तक तुम्हें बचाएगा

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