वफ़ा करो जफ़ा मिले भला करो बुरा मिले
है रीत देश देश की चलन चलन की बात है
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देहात के बसने वाले तो इख़्लास के पैकर होते हैं
रह-ए-वफ़ा में लुटा कर मता-ए-क़ल्ब-ओ-जिगर
दी उस ने मुझ को जुर्म-ए-मोहब्बत की वो सज़ा
मेरे किरदार में मुज़्मर है तुम्हारा किरदार
सब्र-ओ-क़रार-ए-दिल मिरे जाने कहाँ चले गए
आँसुओं के तूफ़ाँ में बिजलियाँ दबी रखना
किस को कहते हैं जफ़ा क्या है वफ़ा याद नहीं
तुम्हारी बज़्म की यूँ आबरू बढ़ा के चले
शिकवा इस का तो नहीं है जो करम छोड़ दिया
लज़्ज़त-ए-दर्द मिली जुर्म-ए-मोहब्बत में उसे
इंसाफ़ के पर्दे में ये क्या ज़ुल्म है यारो
इक़रार-ए-मोहब्बत तो बड़ी बात है लेकिन